बुधवार, 18 अगस्त 2010

सिलसिला
कभी कभी मन करता है ,बच्चा बन जाऊं
रख दूं  अपनी  बुद्धि   किसी   ताक   पर
बंद कर दूं अपनी सोच समझ के कटोरदान को  बहुत  कस के
फिर अपने बालपन के पंख थाम उड़ने लगूँ
उड़ती जाऊं ,उड़ती जाऊं , उड़ती जाऊं
उड़ते उड़ते थक जाऊं
तो भी न रुकूं
धरती पुकारे तो भी न झुकूं
सूरज कि मुहं  दिखाई  करुं
चंदा कि चांदनी अपनी अंजुरी में भरूं
बादलों का तकिया बना सो जाऊं
और मां ढूँढने आये तो उसी कि आड़ में हो जाऊं
पर मां ,कहाँ है मां ?
क्यों मां अब मुझे ढूँढने नहीं आती
क्यों मुझे खाने, पीने ,सोने ,जागने का
वक़्त नहीं बताती
क्यों मेरा भला बुरा
नहीं जताती
क्या मेरा भला चाहने की
उसकी ज़िम्मेदारी अब समाप्त हो गयी है
या अब ये एक चाहत बनकर
उसकी खामोशी में ही व्याप्त हो गयी है
वैसे भी ज़िम्मेदारी कभी समाप्त नहीं होती
ये सिर्फ स्थान्तरित होती है
एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को
एक सीढ़ी  से दूसरी सीढ़ी को
एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को
माँ से बेटी को
अचानक बहुत ज़ोर की आवाज़ हुई
और मेरे पर सिमट गए
मेरे ख़यालात मुझसे ही लिपट गए 
देखा
सोच समझ का कटोरदान
अपनी ही जद्दोजहद से खुल चुका था
और मेरे अन्दर भी
उलझन का जो काला पन था
वो धुल चुका था
मेरे सामने मेरे 'पर' भी थे ,उड़ान भी
और दूर तक फैला आसमान भी
जहां मुझे उड़ना तो था
पर ज़िम्मेदारियों के उड़न-पथ से गुज़र के
क्योंकि मेरे सामने थे
कुछ और 'पर'
वक़्त कि नन्ही कोपलों जैसे ,
अधखुले ,आने वाली नस्लों के 'पर'
मुझे उन्हें खोलना था
उनमें शक्ति और हौसला भरकर
उन्हें परवाज़  देनी थी
आने वाली कल कि संभावनाओं को
आवाज़ देनी थी .
यही नियति है
यही है प्रकृति का नियम
मैं एक 'आज' हूँ
दो कलों को जोड़ती हुई
बीता कल और आने वाला कल
ये 'आज' भी ' कल' बन जाएगा
फिर कोई किसी नए पर को सह लाएगा
उड़ने के गुर सिखाएगा
और ये सिलसिला चलता रहेगा .

5 टिप्‍पणियां:

  1. वाह अर्चना जी वाह...बेहतरीन रचना है आपकी...भावाभिव्यती अद्भुत है...आपकी लेखनी को नमन
    नीरज

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  2. शुक्रिया नीरजजी,आपकी सराहना मेरे लेखन को कुछ और निखारे,कुछ और सवाँरे और आपकी अपेक्षाओं पर खरी उतरती रहूँ इसी उम्मीद और वादे के साथ एक बार फिर शुक्रिया........

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  3. लता, तुम्हारी हौसला अफज़ाई मेरे लिए बहुत माइने रखती है ............शुक्रिया मेरी दोस्त .

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  4. सुन्दर कवितायें बार-बार पढने पर मजबूर कर देती हैं.
    आपकी कवितायें उन्ही सुन्दर कविताओं में हैं.

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