शुक्रवार, 1 अक्तूबर 2010

मेरी कविता ,मेरी पेंटिंग 
रुकी रुकी साँसों में
झुकी झुकी आँखों में
एक बूँद पानी को
अब तलक भी प्यासी है
जम गयी उदासी है

रिश्तों के शीशे भी
 धुन्धलाये लगते हैं
आँखों की कोरों से
सोग बन छलकते हैं
क्या है ये उलझन
ये कैसी बदहवासी है

कौन किधर खो गया
 ये रस्ता  क्यूँ सूना है
पत्तों पे शबनम का
बोझ हुआ दूना है
हो हल्ला यूँ ही हुआ
बात तो ज़रा सी है

4 टिप्‍पणियां:

  1. अर्चना जी

    अच्छी कविता और अच्छी पेंटिंग
    बधाई !


    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  2. कौन किधर खो गया
    ये रस्ता क्यूँ सूना है
    पत्तों पे शबनम का
    बोझ हुआ दूना है
    हो हल्ला यूँ ही हुआ
    बात तो ज़रा सी है

    बहुत ही सार्थक कविता..
    आपका स्‍वागत है 'पुनर्जन्‍म' पर..
    http://punarjanmm.blogspot.com

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  3. मुझे आपका ब्लोग बहुत अच्छा लगा ! आप बहुत ही सुन्दर लिखते है ! मेरे ब्लोग मे आपका स्वागत है !

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  4. आदरणीय अर्चना जी
    नमस्कार !
    कमाल की लेखनी है आपकी लेखनी को नमन बधाई

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