सोमवार, 4 अक्तूबर 2010

पेड़ 

वो एक पेड़ था
फूल और पत्तों से हरा भरा
पेड़ दिन रात यही  सोचता  कि
कब से, मैं ऐसे ही खड़ा हूँ
एक ही जगह जड़ा हूँ
ना आगे जा पाता  हूँ न पीछे
ये भी नहीं देख पाता
की हर पल चलने वाली ये सड़क
जाती कहाँ है ?
मुझ से गुज़र कर चली जाती है
इठलाती,बलखाती,मुहं चिढाती
में तो इसके साथ   चल भी नहीं पाता
बस किनारे से ही देखता रहता हूँ
एक टक,एक ही जगह से,
विवश जो हूँ
एक दिन ,एक  आदमी  आया
बड़ी सी ट्रक लेकर
पेड़ को कटवा कर उस पर  लाद दिया
पेड़ बड़ा  खुश हुआ
चलो,अब मेरे बंधन कटे
अब मैं  भी घूम घूम कर
सारी दुनिया देखूँगा
एक जगह खड़े रहने पर
विवश न रहूँगा
ट्रक सड़क पर चलने लगी
पेड़ गुनगुनाने लगा
आज़ादी के गीत गाने लगा
सड़क को सुनाने लगा
राह में और भी पेड़ खड़े थे
वो उसे देख हसने लगे
आज वो पेड़ और भी दुखी है
क्यूंकि आज वो एक जगह
 खड़ा नहीं , पड़ा है
एक धनाढ्य के
दमघोटू ,बंद कमरे में सोफा बनकर .......

20 टिप्‍पणियां:

  1. कहते सब हैं ''संतोषम परम सुखम '' लेकिन समझते कम हैं ;मसलन ;
    ' हरा -भरा भी है ,ख़ुशबू भी है,समर भी है
    बग़ैर साए के भीर भी शजर नहीं लगता '
    तो कोई पेड़ सिर्फ साया देता है तो कोई सिर्फ फल तो कोई दोनों देता भी है तो मुमकिन है फल ही खाने लायक न हो ,लिहाज़ा ' जो ज़र्रा जिस जगह है वहीँ आफ़ताब है ' और यही सन्देश आपकी इस कविता में है , वाह ,क्या सलीक़े से अपनी बात कही है !
    और एक बात ........वैसे मुझे अतुकांत रचनायें कम ही पसंद आती है लेकिन लगता है के अब मुझे अपनी पसंद पर पुनर्विचार करना पड़ेगा , वाह ,वाह ,वाह ..

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  2. पेड़ के मध्यम से जो बात आपने कही है - प्रशंसनीय है अर्चबा जी। वाह।

    सादर
    श्यामल सुमन
    www.manoramsuman.blogspot.com

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  3. बहुत सुन्दर कविता..
    फेसबुक पर अपने मित्रों को भी लिंक दे रहा हूँ।

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  4. और हाँ डेशबोर्ड की सेटिंग वाले पेज में जाकर देखिये आपने शीर्षक वाला ऑप्शन भी बंद किया हुआ है।
    उसे भी चालू करें।
    ॥दस्तक॥,
    गीतों की महफिल,
    तकनीकी दस्तक

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  5. हिन्दी ब्लॉग की दुनिया में आपका स्वागत है.. ऐसे ही लिखते रहिये..

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  6. नए दृष्टिकोण को लेकर चिंतन करते हुए उसे कविता की शक्ल दी है आपने...बधाई ।

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  7. आदरणीया अर्चना जी
    नमस्कार !
    अभी आपके ब्लॉग में आपकी अन्य पोस्ट्स तथा आपकी कुछ पेंटिंग्स का अवलोकन किया है । एक कलाकार को मेरा सलाम !
    रचनाएं जो छंदबद्ध हैं ,वो बेहतर लगीं । आपकी पहली पोस्ट ज़्यादा पसंद आई ।
    यहां प्रस्तुत कविता भी अच्छी है … लेकिन तर्कसंगत नहीं लगती ।

    शुभकामनाओं सहित
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  8. फूल पत्तियों से लदे पेड की यह नियति होनी थी ...
    अच्छी कविता ...!

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  9. सुन्‍दर रचना..
    परन्‍तु अर्चना जी टिप्‍पणियों के लिए 'word verification' को हटाने का कष्‍ट करें... पाठक को टिप्‍पणी करने में सुविधा होगी।
    सधन्‍यवाद।

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  10. सुन्‍दर....शुभकामनाएं

    http://pradeep-splendor.blogspot.com/

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  11. बहुत सुंदर ब्लॉग पर प्रेरक प्रस्तुति - अच्छा सन्देश.

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  12. मेरे ब्लॉग पर आने और मेरी रचनाओं को सराहने के लिए,आप सभी का बहुत बहुत शुक्रिया ,
    शुक्रिया ,धन्यवाद, आभार ..........

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  13. बेहद ही खुबसूरत और मनमोहक…
    आज पहली बार आना हुआ पर आना सफल हुआ बेहद प्रभावशाली प्रस्तुति
    बहुत ही सुन्‍दर प्रस्‍तुति ।

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  14. इस नए सुंदर से चिट्ठे के साथ आपका हिंदी ब्‍लॉग जगत में स्‍वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!

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  15. ped aur sanskriti jab tak baddhamool rahte hain tabhi tak jeevant rahte hain.sundar rachna hai.sadhuvad.

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  16. आदरणीय लता,भाग्योत्कर्षजी सागरजी,सुरेन्द्रजी,महेन्द्रजी,अमित, ज्योत्स्ना दी, patali the villege,राजेंद्रस्वर्णकार जी, अजय कुमारजी ,वाणी गीत,अमित तिवारी जी ,प्रदीपजी ,भूतनाथजी,संजय भास्कर जी संगीता जी, आप सभी का हार्दिक स्वागत मेरे ब्लॉग पर और आभार मुझे सराहने के लिए ,मेरी हौसला अफजाई करने के लिए ...हांलाकि ब्लाक की दुनिया में अभी नयी हूँ इसके तौर, तरीके और तहजीब से वाकिफ नहीं हूँ फिर भी .......अनुभव और प्रयास ......धीरे धीरे इस जगत से मेरा परिचय हो जाएगा.धन्यवाद और आभार एक बार फिर.

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