रविवार, 28 अगस्त 2011

 बूढ़े माता पिता से ,
जब विदेश में बसे एकलौते बेटे ने ,
फ़ोन पर  कहा 
तुम्हारे पास आ रहा हूँ 
कुछ समय के लिए
बच्चों को इंडिया घुमाने ,
बताओ तुम लोगों के लिए क्या ले आऊँ 
कुछ भी बताओ
यहाँ सब कुछ मिलता है 
एक  से एक बढ़कर उम्दा और बढ़िया चीज़ें 
बस नाम बताओ ,तुम्हारी बहु पूछ रही है
माँ ने  भरभराई आवाज़ में कहा
हाँ ले आओ बेटा ,
अगर हो सके तो......... ,
थोडा सा हौसला जीने के लिए ,
इन बूढी आँखों के लिए कोई ख्वाब ,
कोई अर्थ इन साँसों के चलने का ,
ले आओ अपने पिता के सूने होठों केलिए 
मुस्कराहट ....
ला कर बिखेर दो इस घर के कोने कोने में 
हमारे प्रश्नों के उत्तर 
इन बूढ़े हाथों को थामने की एक,
सिर्फ एक उंगली 
हो सके तो ले आना 
अपनों की कुछ आहटें 
जो चीर दें हमारे  चारों तरफ फैले सन्नाटे को....
बताओ बेटा तुम ये सब
 ले आओगे ना .....................................

15 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत यथार्थवादी...सुन्दर भावपूर्ण रचना....

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  2. amazing words put together ..made something truly amazing..hats off.!!

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  3. दिल को झकझोरने वाली एक मार्मिक और संवेदनशील अभिव्यक्ति।

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  4. धन्यवाद संगीता जी ,आपने मेरी रचना को पसंद किया और " आपकी नज़र तेताला "के लिए चुना बहुत बहुत आभार.....

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  5. वंदना जी,बहुत बहुत आभार.

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  6. बहुत ही मर्मिक रचना माँ - बाप के अकेलेपन कि टीस को उजागर करती खूबसूरत रचना |

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  7. बहुत ही सुन्दर भावों को अपने में समेटे शानदार कविता.

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  8. जब से ये रचना आपसे सुनी है मैं इसे भुला नहीं पा रहा हूँ...कितनी वेदना कितनी पीड़ा भर दी है आपने इन चंद पंक्तियों में...अद्भुत...प्रशंशा का हर शब्द आप की इस रचना के लिए छोटा है...बधाई.

    नीरज

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