सोमवार, 21 फ़रवरी 2011

जब शाम गहन छा जाती है
अँधियारा कुछ  गहराता  है
तब  धीरे धीरे मन वीणा  के  तार
कोई सहलाता है

सारा जग निद्रा मगन हुआ
तारों से जगमग गगन हुआ
जब चाँद,  व्योम  से  झांक
चांदनी  झिर झिर झिर बरसाता है
तब धीरे धीरे मन वीणा के तार
कोई सहलाता है

साँसों की सरगम मधुर बजे
इस पल, इस पर हर तान सजे
जब ह्रदय मयूरा झूम झूम के
गीत प्यार के गाता है
तब धीरे धीरे मन वीणा के तार
कोई सहलाता है

वो शीतल मंद बयार चले
गुन गुन भंवरों की कतार चले
जब पुष्प, रंग रस लिए
देख भंवरों को यूँ मुस्काता है
तब धीरे धीरे मन वीणा के तार
कोई  सहलाता है