गुरुवार, 15 मार्च 2012

लो कट गए हैं रात  के  पर  कैसे   बसर  हो
ख्वाबों के साथ दूर तलक  कैसे  सफ़र  हो

आएगी  तो  देखेंगे  की  लाई  है  क्या भला
इस सुब्ह की नीयत की अभी से क्या खबर हो

ये सच है की भर जाएगा हर ज़ख्म एक दिन
पर मेरी दुआओं का अभी कुछ तो असर हो

रस्मन तो  सूर्य रोज़  ही  फेरा  लगाये  है
पर सच में किसी दिन तो कोई एक सहर हो 

3 टिप्‍पणियां:

  1. रस्मन तो सूर्य रोज़ ही फेरा लगाये है
    पर सच में किसी दिन तो कोई एक सहर हो

    बहुत खूबसूरत भाव ....

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  2. आएगी तो देखेंगे कि लाई है क्या भला
    इस सुब्ह की नीयत की अभी से क्या ख़बर हो

    वाह जी वाह !
    बहुत ख़ूबसूरत !!

    आदरणीया अर्चना जी
    सस्नेहाभिवादन !
    इस रचना सहित आपके ब्लॉग की पिछली कई पोस्ट्स पढ़कर भी आनंद लिया है … तमाम रचनाओं के लिए आभार ! बधाई !


    शुभकामनाओं-मंगलकामनाओं सहित…
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  3. shukriya ,bahut bahut shukriya Rajendraji aur Sangeetajii....

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