गुरुवार, 15 मार्च 2012

लो कट गए हैं रात  के  पर  कैसे   बसर  हो
ख्वाबों के साथ दूर तलक  कैसे  सफ़र  हो

आएगी  तो  देखेंगे  की  लाई  है  क्या भला
इस सुब्ह की नीयत की अभी से क्या खबर हो

ये सच है की भर जाएगा हर ज़ख्म एक दिन
पर मेरी दुआओं का अभी कुछ तो असर हो

रस्मन तो  सूर्य रोज़  ही  फेरा  लगाये  है
पर सच में किसी दिन तो कोई एक सहर हो