रविवार, 23 सितंबर 2012

DAUGHTER'S DAYपर ख़ास ..............

बेटियाँ सिर्फ बेटियाँ कहाँ होती हैं
दो अक्षर में सिमटी सारा जहां होती हैं
तितलियों सी उडती हैं ,खुशबुओं सी बिखरती हैं
 जीवन में भरती हैं नित नए रंग
हमसे ही सीख कर फिर हमें सिखाती हैं
जीने के ढंग
अपनेपन से लुभाती हैं ,अपना बनाती हैं
और हम कमज़ोर पड़े तो
 हमारी ताक़त बन जाती हैं
बेटियाँ तो वो उपलब्धि हैं जो
शब्दों से नहीं भावों से बयाँ होती हैं
बेटियाँ सिर्फ बेटियाँ कहाँ होती हैं 

पराये घर जाकर भी जो सुन लेती हैं
मां की ख़ामोशी
सहलाती हैं पिता का बुढ़ापा
पहचानती है उनका हर दर्द
पढ़ लेती है उनके आँखों की मूक भाषा
 वो हर दिन ,हर पल,
अपनी खुशबू,यादों और इरादों से
उनके साथ होती हैं
कौन कहता है कि बेटियाँ
सिर्फ कुछ दिनों की मेहमां होती हैं
बेटियाँ सिर्फ बेटियाँ कहाँ होती हैं 

कभी लोरियां
तो कभी चांदी की कटोरियाँ
बन कर गुदगुदाने वाली बेटियाँ
वक़्त आने पर जब
मां के हाथों को थाम
उनके कमज़ोर पैर के नीचे का आधार बनती हैं
तो हो जाती हैं ज़मीन
और जब
पिता के सीने में गर्व बन
उन्हें ऊंचा उठा देती है तो आसमां होती हैं
बेटियाँ सिर्फ बेटियाँ कहाँ होती हैं