बुधवार, 27 अप्रैल 2016

जबसे मुझको मुस्कराना आ गया है
जश्न साँसों का मनाना आ गया है

देख कर सच्चाई के संग हौसले को
झूठ को अब मुंह छुपाना आ गया है

मुद्दतों, सहमी हुई सी  औ घुटी सी
ज़िन्दगी को खिलखिलाना  आ गया है

राहे मंजिल पे रुकें अब पाँव क्यूँकर
मुझको काँटों से निभाना आ गया है

अब मुहब्बत की कमी कोई ना होगी
दोस्त दुश्मन को बनाना आ गया है

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें