कैसे जियें ये जिंदगी, कुछ भी
पता नहीं
वहशी ये हैं या आदमी ,कुछ भी पता नहीं
आती रही है आएगी हर दिन नई सुबह
क्या मिट सकेगी तीरगी, कुछ भी पता नहीं
हर दिन नया फैशन,नए जलवे, नये है रूप
खोयी कहाँ है सादगी, कुछ भी
पता नहीं
आँखों की कोर पे ये जो ठहरा हुआ है अश्क़
यादें हैं या है बेबसी, कुछ
भी पता नहीं
उसने मेरे ग़मों को हंसी में
उड़ा दिया
वो प्यार था या दिल्लगी,कुछ भी पता नहीं