रविवार, 1 मई 2016

क्या करूँ मैं कि दिल से सुकूँ आ मिले  
कि शुरू हों कोई तो नए सिलसिले

ज़िन्दगी जा रही,कुछ ना कर पा रही
कैसे पकडूं मैं जाते हुए हौसले

क्या था करना मुझे क्या मैं करती रही
खुद से खुद को ही देती रही फासल

रात जाती भी है सुबह  आती भी है
मेरे अंदर जो है रात वो तो ढले

एक मुसलसल सफ़र और ना साथी कोई
खोये रस्ते में ही सारे जो भी मिले

ज़िंदगी भी अजब एक कहानी है ये

उतनी खुशियाँ भी देती है जितने गिले 

बुधवार, 27 अप्रैल 2016

जबसे मुझको मुस्कराना आ गया है
जश्न साँसों का मनाना आ गया है

देख कर सच्चाई के संग हौसले को
झूठ को अब मुंह छुपाना आ गया है

मुद्दतों, सहमी हुई सी  औ घुटी सी
ज़िन्दगी को खिलखिलाना  आ गया है

राहे मंजिल पे रुकें अब पाँव क्यूँकर
मुझको काँटों से निभाना आ गया है

अब मुहब्बत की कमी कोई ना होगी
दोस्त दुश्मन को बनाना आ गया है

शुक्रवार, 1 अप्रैल 2016

कौन किसी का अब होता है
मतलब से ही सब होता

पहले अर्पण करना पड़ता
झोली भरना तब होता है

कुछ रिश्ते मतलब के होते
पर कुछ का मतलब होता है

अश्क,उदासी ,ख़ुशी,कहकहे 
इनका एक सबब होता है 

लगता वो भगवान् किसी को 
और किसी का रब  होता है

कल की चिंता क्यूँ हो आखिर
चिंता से कुछ कब होता है

कब क्यूँ कैसे ,ये ना सोचो 
होने  दो जो जब  होता है