शनिवार, 25 सितंबर 2010

गुनगुनी शामों को मुठ्ठी में  दबाये
फिर उन्ही  यादों के पंछी लौट आये

एक  इक कर  जोड़ता है  फिर जतन  से
काट कर जो पर शिकारी ने  उड़ाये

कह दिया नादान  लहरों  ने उन्ही  को
वो जो तूफानों से  कश्ती लेके   आये

भर रहा है दोस्ती का दम वो अब तक
कल मेरे ख़त फाड़ कर जिसने जलाये

जब  कभी  भी हसरतों   ने  सर  उठाया 
मुझको तुम पूछो न कितना याद आये 

शनिवार, 4 सितंबर 2010

कट  गयी  है उम्र लेकिन ,ज़िन्दगानी  रह   गयी
अंत पर तो आ गए, लेकिन  कहानी रह  गयी

कब, किधर, कैसे, कहाँ ,छूटी वो मुझसे   क्या पता
बीच बचपन  और  बुदापे   के , जवानी  रह गयी

बीतेते  ही   जा   रहे   हैं , मौसमों    के    काफिले
पर कहीं कुछ   दूर पर, वो रुत  सुहानी  रह गयी

सोचते   ही  सोचते ,   सदियाँ    गुज़रती    जाएँ    है
और  इन्ही सदियों में उलझी, इक   रवानी रह गयी

बेमुरब्बत था बड़ा  वो , छोड़  कर  मुझको  गया
वक़्त तो लौटा नहीं, उसकी  निशानी   रह  गयी

क्या कहूं ,कितना कहूं ,किससे कहूं ,कैसे  कहूं
बांटने को  ग़म  मेरे, मैं   ही   दिवानी  रह   गयी