गुनगुनी शामों को मुठ्ठी में दबाये
फिर उन्ही यादों के पंछी लौट आये
एक इक कर जोड़ता है फिर जतन से
काट कर जो पर शिकारी ने उड़ाये
कह दिया नादान लहरों ने उन्ही को
वो जो तूफानों से कश्ती लेके आये
भर रहा है दोस्ती का दम वो अब तक
कल मेरे ख़त फाड़ कर जिसने जलाये
फिर उन्ही यादों के पंछी लौट आये
एक इक कर जोड़ता है फिर जतन से
काट कर जो पर शिकारी ने उड़ाये
कह दिया नादान लहरों ने उन्ही को
वो जो तूफानों से कश्ती लेके आये
भर रहा है दोस्ती का दम वो अब तक
कल मेरे ख़त फाड़ कर जिसने जलाये
जब कभी भी हसरतों ने सर उठाया
मुझको तुम पूछो न कितना याद आये
वाह क्या बात है... इस रचना को पढ़ आनंद आया.
जवाब देंहटाएंआपके लेखन ने इसे जानदार और शानदार बना दिया है....
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