DAUGHTER'S DAYपर ख़ास ..............
बेटियाँ सिर्फ बेटियाँ कहाँ होती हैं
दो अक्षर में सिमटी सारा जहां होती हैं
तितलियों सी उडती हैं ,खुशबुओं सी बिखरती हैं
जीवन में भरती हैं नित नए रंग
हमसे ही सीख कर फिर हमें सिखाती हैं
जीने के ढंग
अपनेपन से लुभाती हैं ,अपना बनाती हैं
और हम कमज़ोर पड़े तो
हमारी ताक़त बन जाती हैं
बेटियाँ तो वो उपलब्धि हैं जो
शब्दों से नहीं भावों से बयाँ होती हैं
बेटियाँ सिर्फ बेटियाँ कहाँ होती हैं
पराये घर जाकर भी जो सुन लेती हैं
मां की ख़ामोशी
सहलाती हैं पिता का बुढ़ापा
पहचानती है उनका हर दर्द
पढ़ लेती है उनके आँखों की मूक भाषा
वो हर दिन ,हर पल,
अपनी खुशबू,यादों और इरादों से
उनके साथ होती हैं
कौन कहता है कि बेटियाँ
सिर्फ कुछ दिनों की मेहमां होती हैं
बेटियाँ सिर्फ बेटियाँ कहाँ होती हैं
कभी लोरियां
तो कभी चांदी की कटोरियाँ
बन कर गुदगुदाने वाली बेटियाँ
वक़्त आने पर जब
मां के हाथों को थाम
उनके कमज़ोर पैर के नीचे का आधार बनती हैं
तो हो जाती हैं ज़मीन
और जब
पिता के सीने में गर्व बन
उन्हें ऊंचा उठा देती है तो आसमां होती हैं
बेटियाँ सिर्फ बेटियाँ कहाँ होती हैं
बेटियाँ सिर्फ बेटियाँ कहाँ होती हैं
दो अक्षर में सिमटी सारा जहां होती हैं
तितलियों सी उडती हैं ,खुशबुओं सी बिखरती हैं
जीवन में भरती हैं नित नए रंग
हमसे ही सीख कर फिर हमें सिखाती हैं
जीने के ढंग
अपनेपन से लुभाती हैं ,अपना बनाती हैं
और हम कमज़ोर पड़े तो
हमारी ताक़त बन जाती हैं
बेटियाँ तो वो उपलब्धि हैं जो
शब्दों से नहीं भावों से बयाँ होती हैं
बेटियाँ सिर्फ बेटियाँ कहाँ होती हैं
पराये घर जाकर भी जो सुन लेती हैं
मां की ख़ामोशी
सहलाती हैं पिता का बुढ़ापा
पहचानती है उनका हर दर्द
पढ़ लेती है उनके आँखों की मूक भाषा
वो हर दिन ,हर पल,
अपनी खुशबू,यादों और इरादों से
उनके साथ होती हैं
कौन कहता है कि बेटियाँ
सिर्फ कुछ दिनों की मेहमां होती हैं
बेटियाँ सिर्फ बेटियाँ कहाँ होती हैं
कभी लोरियां
तो कभी चांदी की कटोरियाँ
बन कर गुदगुदाने वाली बेटियाँ
वक़्त आने पर जब
मां के हाथों को थाम
उनके कमज़ोर पैर के नीचे का आधार बनती हैं
तो हो जाती हैं ज़मीन
और जब
पिता के सीने में गर्व बन
उन्हें ऊंचा उठा देती है तो आसमां होती हैं
बेटियाँ सिर्फ बेटियाँ कहाँ होती हैं
बेटियों के लिए बहुत सुंदर रचना ...
जवाब देंहटाएंbahut sundar rachna hai aapki
जवाब देंहटाएंआपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 27-09 -2012 को यहाँ भी है
जवाब देंहटाएं.... आज की नयी पुरानी हलचल में ....मिला हर बार तू हो कर किसी का .
bahut badhiya shodon ka samagam...dhnywad kabhi samay mile to mere blog http://pankajkrsah.blogspot.com pe padharen swagat hai
जवाब देंहटाएंधन्यवाद संगीता जी ..
जवाब देंहटाएं..संध्याजी धन्यवाद
जवाब देंहटाएंपंकजजी धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छे बेटियों को जाना है , यही तो बेटियों को पहचानने का एक पैमाना है. जो आप लिख रही हैं वही तो सब मैंने भी जीवन में जाना है. अगर वो हमारी आँख का तारा है तो हम उनके लिए पूरा का पूरा आसमान हैं.
जवाब देंहटाएंबेटियाँ तो पूरा जहां होती हैं....
जवाब देंहटाएंबहुत ही प्यारी रचना.
वक़्त आने पर जब
जवाब देंहटाएंमां के हाथों को थाम
उनके कमज़ोर पैर के नीचे का आधार बनती हैं
तो हो जाती हैं ज़मीन
और जब
पिता के सीने में गर्व बन
उन्हें ऊंचा उठा देती है तो आसमां होती हैं
बहुत खूब
धन्यवाद रेखाजी ....
जवाब देंहटाएंशिखाजी बहुत बहुत आभार ..
जवाब देंहटाएंनादिर् जी शुक्रिया
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंपराये घर जाकर भी जो सुन लेती हैं
मां की ख़ामोशी
सहलाती हैं पिता का बुढ़ापा
पहचानती है उनका हर दर्द
पढ़ लेती है उनके आँखों की मूक भाषा
....बहुत संवेदनशील और भावपूर्ण रचना...
बहुत बहुत आभार कैलाशजी ...
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति है.
जवाब देंहटाएंआभार,अर्चना जी.
धन्यवाद रमेशजी .........
जवाब देंहटाएंधन्यवाद राकेश कुमार जी
जवाब देंहटाएंपराये घर जाकर भी जो सुन लेती हैं
जवाब देंहटाएंमां की ख़ामोशी
सहलाती हैं पिता का बुढ़ापा
पहचानती है उनका हर दर्द
पढ़ लेती है उनके आँखों की मूक भाषा
शब्द-शब्द में व्यक्त भाव मन को छूता हुआ ...
बहुत बहुत आभार सदा ......
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भाव और उतनी ही सुंदर अभिव्यक्ती
जवाब देंहटाएंऋषिकेश जोशी