मैंने अपना नज़रिया ही बदला ज़रा फिर तो सारा नज़ारा
यूँ बदला कि बस
ऐसा क्यूँकर हुआ वैसा क्यूँ
ना हुआ सोचने का ही धारा यूँ
बदला कि बस
मैं ख्यालों में अपने ही
डूबी थी जब मुझको लगती थी
दुनिया बुरी ही बुरी
मैंने आँखों से
चश्मा उतारा ज़रा पानी मीठे में खारा यूँ बदला कि बस
उसकी जिद इम्तेहां वो लिए जायेगी
जीतने की भी मैंने थी
खायी कसम
ज़िन्दगी से ज़रा दोस्ती मैंने की ग़म ख़ुशी में वो सारा यूँ बदला कि बस
मुझमे है एक मैं तुम में है
एक तुम तुम और मैं का ये खेला चला आ रहा
साथ की जब अहमियत पता चल
गयी हम में मेरा तुम्हारा यूँ बदला कि बस
सबके हाथों में पत्थर भी देखे थे और मेरा घर भी तो शीशे का ही था बना
वो ही शीशा जो
मैंने दिखाया उन्हें पत्थरों
का इशारा यूँ बदला कि बस
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