मुझको मेरा घर आँगन याद आता है
कबका बिछड़ा एक सावन याद आता है
जिसकी ओट से जाने कितने सपने देखे
नन्हा प्यारा वो बचपन याद आता है
चूल्हे का वो धुआं ,उबलती दाल ,उफनता दूध कहीं
अलसाई छत पर सुस्ताती छाँव, मचलती धूप कहीं
मन में ठहरा वो मौसम याद आता है
दीवारों पर नाम सहेलियों के लिख रोज़ बदल देना
कभी खेलना हंस-हंस कर तो कभी ठुनक कर चल देना
रिश्तों का न्यारा बंधन याद आता है
चौराहे पर बेर बेचने वाली वो बुदिया नानी
सुबह शाम आँगन के नल से टप टप टप करता पानी
सुधियों का उजला दर्पन याद आता है
बहुत-बहुत बधाई हो
जवाब देंहटाएं''बीती ताहि बिसार दे आगे की सुध ले '' ये बात इन मासूम यादों पर लागू नहीं हो सकती ......अपनी प्यारी सखी को पहला कमेन्ट करने का मंज़र मुझे भी याद आता है ............
जवाब देंहटाएंयाद न जाए बीते दिनों की....जा के न आये जो दिन फिर क्यूँ बुलाये उन्हें दिल क्यूँ बुलाये...बेहतरीन रचना...वाह...याद के गलियारों में टहलने का आनंद ही कुछ और होता है...
जवाब देंहटाएंनीरज