गुरुवार, 14 मई 2020

हमेशा ही रही हूँ ख़ुद से मैं एक अजनबी बन के
प मन करता है अब रह जाऊँ बस अपनी सखी बन के

कभी झरना कभी बूंदें कभी सागर सी लहराऊँ
बुझाने प्यास सबकी रह गयी मीठी नदी बन के

हंसू अपने ही संग खेलूं सुनाऊं खुद को मैं किस्से
कभी रूठूँ कभी खिल जाऊँ मैं अल्हड़ हंसी बन के

वो बातें जो बरस बरसों में हो न पायीं हैं अब तक
उन्हें लम्हों में मैं जी लूँ खुशी की इक सदी बन के

मिले मुझको नहीं तुम ज़िन्दगी में क्यों करूं शिकवा
मेरे भीतर तो तुम ही रह रहे हो ज़िन्दगी बन के

अर्चना जौहरी

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