शनिवार, 16 मई 2020

तो क्या हुआ हम घरों में हैं
तो क्या हुआ सड़कें खाली हैं
तो क्या हुआ दफ़्तरों में काम नहीं हो रहा
तो क्या हुआ हम आपस मे मिल नही रहे
परिंदे तो आकाश में उड़ रहे हैं
हवा चल रही है
नदियां बह रही हैं
सूरज रोज़ निकल रहा है
चांद अपनी चांदनी बिखेर रहा है
प्रकृति पनप रही है
समय का चक्र घूम रहा है
शाश्वत हम नहीं,शाश्वत प्रकृति है
और जब तक प्रकृति है,जीवन है
आशा है,उम्मीद है

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें