खुद लिक्खूं अपनी मैं कहानी अभी तो ये हालात नहीं
और कोई क्या जाने मुझको किसी के बस की बातनहीं
मेरी आँखें मेरे सपने मेरी रातें मेरी नींद
मेरा चैन मेरी बेचैनी किसी के ये जज़्बात नहीं
जिन राहों पे सफर है मेरा,मेरी अपनी राहें हैं
कंकड़ पत्थर धूल सभी कुछ फूल मुझे सदमात नहीं
गरल को भी मैं अमृत समझूँ गर मेरे हिस्से का हो
और के हिस्से का अमृत भी गरल लगे सौग़ात नहीं
सांस सांस लम्हा लम्हा तो मैंने ख़ुद को लिक्खा है
कहां समेटूँ किन पन्नों पर धोए जिन्हें बरसात नहीं
अर्चना जौहरी
और कोई क्या जाने मुझको किसी के बस की बातनहीं
मेरी आँखें मेरे सपने मेरी रातें मेरी नींद
मेरा चैन मेरी बेचैनी किसी के ये जज़्बात नहीं
जिन राहों पे सफर है मेरा,मेरी अपनी राहें हैं
कंकड़ पत्थर धूल सभी कुछ फूल मुझे सदमात नहीं
गरल को भी मैं अमृत समझूँ गर मेरे हिस्से का हो
और के हिस्से का अमृत भी गरल लगे सौग़ात नहीं
सांस सांस लम्हा लम्हा तो मैंने ख़ुद को लिक्खा है
कहां समेटूँ किन पन्नों पर धोए जिन्हें बरसात नहीं
अर्चना जौहरी
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